मै और तुम
-----------------------------------
मन के दर्शन और
मन के दर्शन और
तन के गणित मै
खरा पाया
देख समर्पण आपका
मेरा रोम रोम भी
कितना थर्राया
मैने तुम्हारे मन के भावों में भी
सागर सा गहरापन पाया,
अमिट विश्वास
रखा तुमने
मुझ पर अपना तन मन वारा
अब इतने होने पर भी
क्यूँ दूर तुम चले गए
प्रिय
जान सको तो जान लो
कितना चाहा
है हम दोनों ने
मै और तुम
एक होकर यह एक बात जान लें
की एक होना
नियति न भी हो
तो भी मन के मिलन को
कोई भी दूरी
मिटा नहीं सकती .
---------------------अनुराग चंदेरी
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें