हरिओम राजोरिया जी की एक कविता
हरिओम राजोरिया जी मेरे प्रिय कवि है . नमन एवं धन्यवाद भाई साहव जी --------------अनुराग चंदेरी
यूँ ही बीत रहा हूँ
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मै तो बिलकुल अकेला
रीत रहा हूँ
यूँ ही बीत रहा हूँ
शांत, निर्लप्त और चुपचाप
मेरे हुलस उठने
या उदास हो जाने का
कहाँ उठता है सवाल ?
ऐसा नहीं की मुझे
अपने इस तरह खाली होने का
कोई अफ़सोस नहीं
मेरे भीतर भी एक आदमी है
रेतमाल है जिसके पास
और जो मौका देख कर
रेतने लगता है मेरी हड्डियाँ
अपने आड़े वक़्त में खड़ा हूँ
पेड़ की तरह
जो बोलते बोलते भी
कभी बोल नहीं पाता
जो अपनी ही चुप्पी को
झेलता रहता है चुपचाप.
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