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मंगलवार, 14 अगस्त 2012

मेरे भैया

मेरे भैया
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जब जब 
रक्षाबंधन आता 
मेरे भैया 
मुझे बहुत याद आते 
कितना मुझे प्यार करते थे 
मुझे ब-मुश्किल स्कूल जाने दिया 
और कॉलिज
तो जाने ही नहीं दिया 
भैया के किसी दोस्त से
कभी मेने बात नहीं की
कभी जींस और कोई भी
आधुनिक परिधान
नहीं पहने
घर की चारदीवारी को
कभी नहीं लांघा
कैसे कैसे सपने देखा करते थे
भैया
की मै दुल्हन बनूंगी
किसी अमीर परिवार की
और उनके घर की इज्जत
मुकुट बनी रहेगी
लेकिन कब किसकी
मुरादें पूरी हुई हैं
जो उनकी हो पाती
मेरे जीवन मै न जाने
कहाँ से
ये जूनून आया
मेने हर हाल मै पढने का
बीड़ा उठाया
और तमाम बिरोधों के
आगे नहीं झुकी
और पढ़ कर
अंग्रेजी की
प्रोफ़ेसर बन गई
और दुल्हन न बनने का
घनघोर निर्णय ले लिया
आज भैया अपनी दुकान पर
बैठ बैठे अभी भी
कोसते है
की घर की लाज ले गई
ये बहना
ये पापिन
होती ही नहीं
चाहे रक्षाबंधन
का त्यौहार ही
अधूरा
रह जाता -----------------अनुराग चंदेरी 

खुशबू

बिखरना फूलों को ही 
नहीं आता 
कुछ रिश्ते भी 
ऐसे ही बिखरते है 
बो आज भी 
कितने प्यारे हैं
उनके पल्लवित पल 
और प्रमुदित खुशबू 
आज भी 
बहीं ठहरी है 
मेरे मन के साथ ---------------------अनुराग चंदेरी

रिश्ते

कैसे कैसे रिश्ते 
बनाने चला था मै
आग के दरिया से 
शीतल बयार 
कहने चला था मै 
दोस्ती के 
कितने वास्ते 
देता उसे 
जिसके दिल मे 
न था 
उसके दिल मे
जगह पाने चला था मै--अनुराग चंदेरी 

आँखे

मैने
दी थी जो कसम उसे 
ये कौन निभा रहा है 
बो मुझे भुला कर भी 
मेरे दिल से 
गा रहा है 
ये अहसास भी 
छू कर 
रो देती है आँखे
मेरे ओंठों पर 
खारापन बो 
क्यूँ ला रहा है -------------------अनुराग चंदेरी

लहू लुहान है मानवता

धर्म 
के अभ्यारण मै 
जितने पण्डे है 
बे खूंखार 
आदमखोर पशु से 
भयानक और शैतान हैं 
इन्हें 
इंसानों को प्रेम करना नहीं आता 
इनके शिकार से 
लहू लुहान है 
मानवता की थाती -----------------अनुराग चंदेरी