लील गए  
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आमो के उपवन में 
पलाश के फूल 
कोयलों को बुला कर 
समझाने लगे 
और धीमे धीमे भड़काने लगे 
की ये मिठास बन में 
किनकी है 
तुम्हारी या आमो की 
बड़ी बात है  यह 
यारो  राजनीति कहा नहीं है 
नदियों से  तो पूछो 
बांधो  ने क्या क्या 
अत्याचार किये है  
उनकी पहचानो को लील गए 



                                                                                      गिद्ध और कौए                           
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गिद्ध और कौए 
अब नहीं दिखते
मुंडेरो पर
और जंगलो
में भी 
दिख जाये 
कभी कभार 
तो खैर !
पल्टूराम की गाय
इसलिए
ही 
सड़ती रही दो  पखवारे तक 
पड़ोस के घूरे
पर 
बेचारा घूरा भी 
बंद    कर
अपनी नाक 
देता रहा गालिया
मानव विकास लीला को 
जो लील गई 
हमारी सहजता 
हमारी प्रकृति
गिद्ध और कौए भी 
जो कर जाते थे चट
क्षण भर में 
समस्त सड़ांध 
और गंदगियो को .
anurag sharma chanderi 

 
 
 



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