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शनिवार, 28 अप्रैल 2012

अकेले भले


अकेले भले 
------------------------
उत्साह 
टूटता  चला 
जैसे जैसे 
तुम दूर चले 
मन की 
पगडंडियों मै 
हम न थे 
सूने भले 
आस 
भी जान जाती है 
हकीकत के 
पहाड़ों को 
तभी आँसूं 
बस रोने चले ,
क्यूँ  मिलन के 
गलियारों  में
प्यार भी 
एक राजनीति था 
बो दूर हो कर 
अब 
अजनवी बन 
हमसे मिलने चले ,
यकीन के 
जो शव्द कहा करते थे 
बे ही 
छल के सायों के
 साथ चले ,
न मिलते 
ऐसे साथी 
इनसे तो 
अकेले भले ........................अनुराग चंदेरी 

मलाल

मलाल
---------------------
ओंठों  पर
हँसी  रखता हूँ 
जी  हाँ 
मै खुश रहता हूँ 
यह  कहना  है
मेरे  सभी दोस्तों  का 
लेकिन  हँसी 
के गुब्बारों  मै भी 
मलाल उड़ते  रहते  हैं 
जो  अक्सर  कहते हैं  की 
मै  नादान सा 
क्यूँ 
ढ़ोता  रहा 
बह  अपनापन  
उनका 
जो मुझे 
मिला ही नहीं ----------------अनुराग चंदेरी 
 
 

शुक्रवार, 27 अप्रैल 2012

फूल

जख्मों  के कांटे 
भी 
तरस खा के रो दिए 
पर  उन्हें दिखाई न दिए 
मेरे प्यार के 
फूल 
बे तो उलझे रहे खुद को 
पाक सिद्ध करने में .
---------------------------------अनुराग शर्मा 

मै और तुम


मै और तुम
-----------------------------------
मन के दर्शन और 
तन के गणित मै 
खरा पाया 
देख समर्पण आपका 
मेरा रोम रोम भी
 कितना थर्राया 
मैने तुम्हारे मन के भावों में भी 
सागर सा गहरापन पाया,
अमिट विश्वास
रखा तुमने 
मुझ पर अपना तन मन वारा
अब इतने होने पर भी 
क्यूँ दूर तुम चले गए 
प्रिय 
जान सको तो जान लो
 कितना चाहा
है हम दोनों ने 
मै और तुम 
एक होकर यह एक बात जान लें 
की एक होना 
नियति न भी हो 
तो भी मन के मिलन को 
कोई भी दूरी 
मिटा नहीं सकती .
---------------------अनुराग चंदेरी 

 


 

   
 

कितना चाहा मैने तुमको

कितना  चाहा  मैने  तुमको 
--------------------------------------
कितना चाहा मैने तुमको 
ये  तुम  प्रयास कर पहचानने  के भी 
जान  ना सकीं ,
साँसों  के  साथ  धड़कता  है
तुम्हारा  होना
सिर्फ  सोच  का 
विज्ञानं भर काफी नहीं 
मन  के
गहराते भंवरों  में 
तुम रहीं एक 
चक्रवात  सी  धारा,
मेरे  होने  का पर्याय हो तुम 
इस जीवन  का 
अर्थ हो तुम 
तुम्हारे  साथ होने 
और न होने से भी 
ऊंचा है 
मेरे प्रेम का विन्यास 
, तुम्हे  न जाने क्यूँ 
इतना चाहता हूँ 
शायद मेरे अधूरे 
मन का ही कोई 
हिस्सा हो तुम ,
मेरे  मन में 
रहता है एक अधूरापन 
मानो नदी  सा 
मै पानी विहीन 
तुम बिन 
पसरा होऊं 
इस धरा पर , 
तुम मेरे आकाश मै 
सूरज हो  
, लेकिन दिन मेरे पास नहीं है 
मेरी दुनिया सिर्फ  अँधेरी रातों की है ,
उजाले का श्राप इस जग ने 
दिया है मुझे 
मुझे  तो अंधेरों  मै
जीना मरना है ,
लेकिन आस लगी है 
पल पल की 
अँधेरा कभी तो विलीन होगा ,
मुझे तुमसे बेहद प्यार है ,
मैने तुम्हें 
पूरा चाहा है 
सारे मनोवेगों के साथ , 
शायद ईश्वर भी 
देखता होगा 
तो रखे होगा जलन अति की,
लेकिन अगर यह उसका भी 
घ्रणा भाव है तो भी 
मेरा प्यार कम न होगा 
चाहे तुम बनी रहो 
दूर अनंत सी ,
------------------------अनुराग चंदेरी 

गुरुवार, 26 अप्रैल 2012

प्यार 
--------------
तुमने  न जाना
मेने महशूस 
किया है जीवन  के 
बंधन में 
ये गहरा बंधन 
निर्मित किया है 
जो जुड़ कर 
अब टूट नहीं सकता 
इसे मैने निर्मित किया है 
मेरे मोह से 
यह जानते हुए 
की तुमने 
उतना गंभीर होकर 
नहीं सोचा है 
तभी तो तुम मेरी गंभीरता 
में मजाक खोजते हो 
मेरे हास्य से  
तुम्हे कोई 
लगाव नहीं 
तुम सिर्फ बे ही बाते 
कर पाते हो जो जुड़ीं है 
तुम्हारे व्यब्सायों से 
तुम्हारे मन 
में नहीं उठे है 
बे सागर जो
दो बूँद भी 
ला पाते आंसूं ,
लेकिन तुम जानो 
ये जरूरी तो नहीं,
तुम्हारे मन में 
जो सपने हैं 
उनके दायरे भी 
निर्मित हैं ,
तुमने कैद भी किया है
सपनों को 
ये भी अब डरते है 
मुक्त प्यार की 
अभिव्यक्ति से  
तुम्हारे सपने भी देख लेते है 
धर्म के द्वार 
उम्र के गलियारे 
समाज की वर्जनाएं 
 और परिवार की मर्यादाएं ,
इसलिए  तुम दूर जाते हो 
निकट आते हुए भी ,
मै जान गया हूँ की
निकट आना तुम्हारा 
दूर जाने का ही एक 
कदम है 
दिशाएं अर्थ हीन 
हो जातीं हैं 
जब बे निर्देशित हों 
निश्चित सूत्रों से 
,मै तुम्हारे 
भय के सूत्रों को 
जान कर पीछे भी 
नहीं जा सकता 
मैने मुड़ना नहीं सीखा 
तुमने 
आगे आना नहीं सीखा ,
फिर भी रहेगा शेष 
बस प्यार 
,जो निधि है मेरी
 अमूल्य 
----------------------अनुराग चंदेरी 
-----------------------------------------------

 
 

बुधवार, 25 अप्रैल 2012

भुलावे झूठे .

कैसे सहा 
सहम के 
बुझना मन का 
देखा अपनों का 
फीकापन 
उनकी ऊबें ,चिड
ही होती तो चल जाता 
मैने स्वयं को 
उनके मन से 
उतरते देखा ,
जलते चिरागों को 
बुझते बुझाते देखा ,
कैसे रहे रिश्ते 
स्वार्थ की डोर 
से बंधे 
अनुपयोगी होते ही 
पल में टूट गए ,
बिखर गए सब 
बंधन सारे 
रह गए 
शेष 
भुलावे झूठे .
----------------------
अनुराग चंदेरी 
-----------------------



दायरे

वक्त  के  दायरे   
नहीं  बदलते  कभी 
ये  तो  मन  है
जो छोटा बड़ा 
होता  रहता   है  . 
------------------------------
अनुराग चंदेरी 
--------------------------

रविवार, 22 अप्रैल 2012

साजिश

जब से जाना है 
मैने दर्द भूख का 
नेताओ के दरवारो और 
मंदिर की प्रार्थनाओं से चिड हो गई है 
एक सामने रह कर नहीं सुनाता 
दूसरा अद्रश्य हो कर नहीं सुनता 
क्या पता 
दोनों की साजिश है कोई ?
-----------------------------------
अनुराग चंदेरी 

आईने

वक़्त के आईने 

में खुद को नहीं देखा 

इसलिए सब का
बुरा मानते रहे -------------
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
अनुराग  चंदेरी 
हवाओं में भी 
धोखा है 
जाने किन तूफानों से 
वादा किया हो 
इन ने 
साथ लाने का ---------
----------------------
अनुराग  चंदेरी 

प्रणय

प्रणय के चार दिन 
अवसाद भरी 
एक उम्र से ज्यादा है

--------------------------


अनुराग  चंदेरी 
उम्र के हर उस मोड़
पर कभी साथ तुम न थे 
जब थी जरूरत 
बेहद मुझे ,
में तो कर्ण सा शक्ति बिहीन 
रहा जीवन के 
महाभारत में
------------------------------
अनुराग चंदेरी   

शनिवार, 21 अप्रैल 2012

चुप-चाप (अज्ञेय )

चुप-चाप 
-----------------
चुपचाप  चुपचाप 
झरने  का  स्वर
हम  में   भर  जाए
चुपचाप  चुपचाप
शरद  की  चांदनी  
झील  की  लहरों  पर  तिर  जाए 
चुपचाप  चुपचाप 
जीवन  का  रहस्य 
जो  कहा  न   जाये , हमारी 
ठहरी  आँखों  मे  
गहराए  
चुपचाप    चुपचाप
हम  पुलकित  विराट में  डूबें 
पर  विराट  हम  में  मिल  जाए 
चुपचाप   चुपचाप 
मेरे ह्रदय में 
खून के  आंसू थे 
तुम आँखों से देखते रहे 
इसलिए मुस्कुराते रहे .............
============================
अनुराग चंदेरी 

शुक्रवार, 20 अप्रैल 2012

मौन युद्ध

मौन युद्ध 
-------------------------
चुप  हो  जाना 
एक  लड़ाई   है  
अद्रश्य  
जो  समझता  है
बह  भोगता  है,
चिड़ियों   सी  चहक  देता  चेहरा 
जब  मौन  हो  जाये 
तो समझो  ये 
एक  शुरू  होती  लड़ाई है 
जो  शव्द्विहीन   हो कर  चलाई है 
यह  युद्ध  का  आकार
और दूरियां  निर्मित    करने  की 
की ज्यामिति  है 
तर्क  से  भी 
सूक्ष्म  ,मौन   की  भाषा  में 
दी  जाती  है  गालियाँ
यह  अप शव्दों  से   आगे  की प्रताड़ना  है 
यह युद्ध  भयंकर साजिश है 
उत्साह  के  विरुद्ध निराशा की 
मन  के  खिलाफ 
किसी  बेमन  की , एक  करता  है शुरू 
दूसरा  भोगता  है
असहमति  के प्रदर्शन  का  यह अमानवीय 
युद्ध  बेहद  खतरनाक  है 
यह कटु बचनों  से ज्यादा  तीखा 
अनवरत  स्याह  कटार  सा  चलता  है 
ये  तो  मौन युद्ध  है 
जो  भोगे  बो  जाने  
---------------------------------------
अनुराग चंदेरी 

  

भ्रम

भ्रम 
-----------------
चट्टान  से  भारी 
हो  गया  मन  तुम्हारा 
सारी  नाजुकताएं 
और  कोमल  अहसासों  को 
तुमने  पूर्णतः  
मन  की   स्मृतियों   से हटा दिया  है 
तभी  तो  चले   गए  तुम 
अनंत   की परिधियों  में 
दूरी के  उस  पार ,
बहां  जा कर भी  
खुद को छिपा   लिया   है 
तुमने तो ओढ़  ली   है चादर 
समाज  के   रिवाजों की 
परिवार  के बंधनों  की 
धार्मिक  विधानों  की 
अब तुम  इंसान होने  के 
भ्रम  में  हो 
मेरे  अहसासों  और
प्रेम  को भुला  कर ...
-----------------------------------------
अनुराग चंदेरी 


   

गुरुवार, 19 अप्रैल 2012

खामोशियाँ

खामोशियाँ 
----------------
कोई  बीज  
थोड़े  ही  बोता  है  
खामोशियों के 
ये  तो  उग  आती  है
सहज  ही
मन  के  विचलन  और  
तनाब  के  दारुण  में  ,
ये   तो सघन  प्रेम  
और  गहन  आलिंगन  में 
भी  पैदा  हो  जाती  है ,
खामोशियों  की  तस्वीरें
जीवन  में 
रंग  देती  हैं 
यथार्थ  को  जानने  का 
समझ  के विज्ञानं  को  
 व्यस्थित   कर  पाने  का 
ये  उपद्रब  का  विपरीत  नहीं    
ये उपद्रब  का  विकल्प   हैं
ये  भयभीत  नहीं  करती  
ये  तो बना देती  हैं  निर्भय  हमें .
--------------------------------------------------
अनुराग   चंदेरी   
 

सोमवार, 16 अप्रैल 2012

नमी

आप रिश्तों  को
कहने लगे बेड़ियाँ
आँख की
पर नमी को नमी बोलिए --------------------राकेश जोशी

dam -kavita

दम
------
उदासी और निराशा भर
साथी होते तो टूट जाता मै
ये आशाओं के पंख भी
क्या कमाल के है
इन्होंने हार नहीं मानी
उड़ना सीखा है
बस लड़ना सीखा है
दम से ,
फिर चाहे हार ही
हाथों मे क्यूँ न हो ,
संघर्षों से
मिल जाती है
संतुस्टी--------------------------अनुराग चंदेरी  

 हरिओम राजोरिया जी की एक कविता
यूँ  ही बीत रहा हूँ 
-----------------------------
मै तो बिलकुल   अकेला 
रीत  रहा  हूँ  
यूँ ही बीत रहा हूँ
शांत, निर्लप्त और चुपचाप
मेरे हुलस उठने
या उदास हो जाने का
कहाँ उठता है सवाल ?
ऐसा नहीं की मुझे
अपने   इस  तरह   खाली होने का 
कोई अफ़सोस  नहीं  
मेरे भीतर भी एक  आदमी  है 
रेतमाल है जिसके पास 
और जो मौका देख कर
 रेतने लगता है मेरी हड्डियाँ 
अपने आड़े वक़्त में खड़ा हूँ 
पेड़ की तरह
जो बोलते बोलते भी
 कभी बोल  नहीं पाता 
जो अपनी ही चुप्पी को
 झेलता रहता है चुपचाप. 
  
हरिओम राजोरिया जी मेरे प्रिय कवि  है . नमन एवं धन्यवाद भाई  साहव जी --------------अनुराग चंदेरी

शनिवार, 14 अप्रैल 2012

kaayi

      
काई  
                                                                                                                                                                                  
रास्ते अलग कैसे
हुए
मंजिल तो एक थी
प्यार भी
एक था
विश्बास भी एक था
और हम भी एक थे ,
 ये दूसरा कौन था
ये मुझे क्या पता
तुम ही जानो
शायद कोई नहीं
ये तो अलग होने के तरीके है
 ध्यान रखना , फिर भी
अलग नहीं हूँ मै
मैने सीखी है जोड़ने
और जुड़ने की भाषा
इस भाषा का तुम
भरपूर प्रयोग करो
और जो सोचो बैसा करो ,
तुम्हारा करना फिर भी तुम्हारा होगा
मेरा नहीं
मै तो रहूँगा साथ तुम्हारे
मानो मन मै उग आई हो
तुम्हारे प्यार की  
काई  
 --------------------------------
अनुराग चंदेरी

ye pyar

        ये प्यार 
---------------------------                                                                                                                                                                     एक अखबार की तरह
रखा तुमने 
अपने मन में ,
जब व्यस्त रहे तो 
पटक दिया ड्राइंग टेबल पर  ,
 बाकि फुर्सत के वक़्त  
मै बना रहा तुम्हारा अपना 
अब लगता है 
तुमने
तैयारी करली है  
मुझे रद्दी बाले को बेचने की ,
मुझे तुम्हारा साथ
फिर भी बहुत प्यारा लगा
दूर रह कर भी
करता रहूँगा याद मै तुम्हे
हमेशा .   अनुराग चंदेरी

गुरुवार, 12 अप्रैल 2012


ये शीशे ये सपने ये रिश्ते ये धागे
किसे क्या ख़बर है कहाँ टूट जायें
मुहब्बत के दरिया में तिनके वफ़ा के
न जाने ये किस मोड़ पर डूब जायें

... अजब दिल की बस्ती अजब दिल की वादी
हर एक मोड़ मौसम नई ख़्वाहिशों का
लगाये हैं हम ने भी सपनों के पौधे
मगर क्या भरोसा यहाँ बारिशों का

मुरादों की मंज़िल के सपनों में खोये
मुहब्बत की राहों पे हम चल पड़े थे
ज़रा दूर चल के जब आँखें खुली तो
कड़ी धूप में हम अकेले खड़े थे

जिन्हें दिल से चाहा जिन्हें दिल से पूजा
नज़र आ रहे हैं वही अजनबी से
रवायत है शायद ये सदियों पुरानी
शिकायत नहीं है कोई ज़िन्दगी से
sudarshan faakir
ह्रदय का मर्म 
----------------------
मन सुमेरु सा स्थिर 
भाव हिमालय से ठहरे 
पडाब की बात फिर कहाँ बदले ,
जीबन के घने उपवन में 
जो ब्रक्ष जम गए 
बस बे ही पले,
यकीन दिलाती शव्दों की चट्टानें 
स्थिर प्रग्य हो 
बस आगे चले 
शव्दों के थे हम हुमायू
 हारे  रण तो क्या
फिर सत्ता लेकर ही हले,
ह्रदय में इस्पाती खम्भे थे
इरादों के आगे न टले,
जीवन में सूत्र विचारों के
जल जल कर भी
न जले ,
प्रीत की आग और
नैतिकता  के धारों में
बस आगे
बहते चले ,
जो सोचा बही कर्म बना
जीवन न था स्वर्ण
फिर भी ह्रदय का मर्म बना
तूफानों की धमकियों को भी
दिखाते रहे ठेंगा
आकर मन में
न कोई भय पले ,
जीवन हारों का खलिहान बना
फिर भी
ओंठों पर उत्साही हल चले ,
आशाओं के दरवाजों पर
देते रहे सदा दस्तक
माथे पर न कोई बल पले .
-----------------------------------------अनुराग चंदेरी ,
मेरी यह कविता  अंग्रेजी के प्रसिद्द अमेरिकन  कवि रोवेर्ट फ्रॉस्ट को समर्पित है , जिनकी प्रसिद्द कविता "Stopping By Woods on a Snowy Evening " से यह प्रेरित है . मै उन्हें याद कर , अपने इरादों को और भी मजबूत करता हूँ , मैने स्वयं से जो वादे किये है उन्हें हर हाल मै पूरा करूँगा . बाधाओं का सवाल नहीं है , इरादों का खौफ भी नहीं है . मुझे मेरे होने से कोई नहीं रोक सकता . लोगों का साथ रहना या न रहना बिलकुल निरर्थक है , मेरे स्वयं से किये वादे, मुझे मंजिल दिखाते है . पुनः फ्रॉस्ट जी को नमन करता हूँ . धन्यवाद .
 -------अनुराग चंदेरी .
 
  मै इस कविता की चार पंक्तियाँ भी प्रस्तुत कर रहा हूँ -
 
" The woods are lovely, dark and deep.
But I have promises to keep,
And miles to go before I sleep,
And miles to go before I sleep."------------Robert Fraust ( u. s. a. )
 

बुधवार, 11 अप्रैल 2012

सूरज
---------------------------------
सूरज
स्वर्ण बिखेरता 
 आँगन मै
हर रोज़ आ जाता है
और आलसी मनुष्य
बिस्तर मै दुवका
पड़ा रहता सोचता है
की अभी तो
उठने मै काफी देर है
ऑफिस जाने के लिए तो
दो घंटे शेष है .
अनुराग चंदेरी
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मेरे आलसी दोस्तों को समर्पित यह कविता
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                                                                                                                                                                                       नयी आशा के साथ सुबह
मै निहारता हूँ
सूरज तुझे
तेरी लालिमा
मुझे नए जीवन से भर देती है
मै दिन भर फिर
निराशा के बीज क्यों बोउं
मैने तुझसे सीखा है 
धीमे धीमे आगे बढ़ना 
प्रज्ज्वलित होना 
सहज हो कर बापस 
अपने मार्ग मै
लौट  जाना . 
--------------------------
अनुराग चंदेरी

आइटम नंबर

आइटम नंबर 
--------------------
नारी स्वंत्रता  को लेकर
बालीबुड कमाल करता रहा है 
चाहे प्रश्न 
मंदाकनी को
गंगा में अधो बस्त्र में 
नहलाने का हो 
जीनत को आधुनिक
 बताने का हो
डिम्पल को बिकनी
 में दिखाने का हो
या फिर विध्या वालन लो
डर्टी दिखाने का हो
कमाल जारी है
और इन दिनों तो
अति जरूरी हो गया
स्त्री तेरा आइटम नंबर होना
न्यूनतम कपड़ों में
बस्तु बन कर पेश होना
कैसी नारी स्वंत्रता है
आइटम यानि बस्तु होना
स्त्री परतंत्रता है
लप लपाई पुरुस बासना में
हुंकारे भरती 
तारीफों को
मान न दे
कुछ ख्याल कर गरिमा का
क्या अर्धनग्न हो कर
तेरी जीत सुनिश्चित  है
यदि हाँ तो
हो जा तू
पूर्णतः निर्बस्त्र ! 
------------------------------------- 
anurag chanderi
 
 
 
 
पुस्तकों की दुकान
 खोल कर
अनपढ़ों  के
नगर मे रहे .
-------------------------------
तुमसे बिछड़े तो
किसी ख्वाव को पानी न मिला
एक मरुथल था ,
जहा  उम्र बिताई हमने .
------------------------------------उर्मिलेश

yakeen


क्या बार बार
कहता रहूँगा ,
की तुम मेरी हो 
और मै तेरा  
इस तेरे मेरे होने के मध्य
यकीन ही बसता है
ये डरता  क्यों है
डराता क्यों है
भयभीत मन
इस यकीन को समझा
या भय करना छोड़ दे .
अनुराग चंदेरी

मंगलवार, 10 अप्रैल 2012

ansuna

अनसुना
--------------------
चिड़िया
तुम्हारा मेरे घर आना
तिनका तिनका घोंसला बनाना 
कलरब से खुशियाँ भरना 
कितना प्यारा था 
लेकिन तुम नहीं मानी 
कितना कहा तुमसे 
की घोंसला पंखे के निकट ना बनाओ 
लेकिन अपनी कलावाजी के मद में
अनसुनी रही तुम
और आज जबकि 
तुम नहीं हो 
तुम्हार मृत शरीर 
देख आँखे 
डब-डवायी हैं
कुछ तो हो सकता था
में पंखा न चलाता
या तुम घोंसला न बनाती
हम दोनों ने एक दूसरे को
अनसुना क्यूँ  करदिया
चिड़िया  ? 
-------------अनुराग चंदेरी
शीतल  किरणे चाँद की
चुभने  लगी मुझे
जबसे पता चला
बो मेरी याद मे रोता बहुत है
अनुराग चंदेरी
------------------------
 उसकी आँखे 
---------------------------
घर छोड़ कर 
मै चला कुछ दूर 
तो रोकने लगा दरवाजा
आ कर सबसे पहले कहने लगा
मुझे बस एक बार   और
जोर से बंद कर दो
भले जोर से ही सही
तुम्हारे स्पर्श की प्रीत
मन को खुश कर देगी
उसकी बात पूरी हुयी ही ना थी
की चारपाई भी आ कर
करने लगी आग्रह
की मै कुछ क्षण विश्राम के
उसके साथ बिता लूं
तभी कुर्सियां खड़ी हो गई आ कर कतार मे
आकर करने लगी आग्रह
की मै ना जाऊं घर छोड़ कर
उन्हें इस तरह तोड़ कर
पुराने जूते भी रोकने लगे
स्टूल ,टेबल ,दरी और चटाई भी
टोकने लगे
पुराने पेन भी
मेरे हाथो को थाम कर
खींचने लगे घर की ओर
तभी  कंप्यूटर 
क्रोध  से कहने लगा
अच्छा !
मोबाइल से ऐसी प्रीत
उसे साथ लिए
जाते हो
और मुझे ?
चूल्हे , कुकर
करछुल , भगोनी
हांड़ी और तवा
पंखे टी . व्ही .
सोफा , और डबल बेड
झाड़ू   और मटके
जग और कप  भी 
भी मोन हो कर खड़े हो गए 
मै तब भी ना रुका
चलता रहा , बढ़ता रहा
मन को कर स्थिर प्रज्ञ
मन मे नया कुछ सजता रहा
तभी मोड़ पर
मेरी लायब्रेरी
की प्रिय पुस्तक
"सत्य के साथ प्रयोग "
गाँधी जी की , पर्ल. एस . बक
की "धरती माता "
के साथ खड़ी
मुझे घूर रही थी
उसकी दोनों आँखे
डबडबाई   सी
बस चुप सी
कुछ भी नहीं कहती थी
सहसा
मेरी आँखे भी
बरसने लगीं
और------------------
मेरी नींद खुल गई
मैने तकिये के
पास बिखरी दोनों किताबो को
छाती से लगा लिया .
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अनुराग चंदेरी
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