दो जून की रोटी
=========================
शाम तक
आहटें भी चुप होने लगीं
पक्षियों का कलरब
और हवाओं का बहना भी
बंद हो चला
लेकिन व्याकुलताओं का वास
मन से नहीं जाता
एक भी पल को .
फिर कल होना है
और इंतजाम करना है
भूखे पेट का
मशीनों से सर मारना है
और पहले तो मजदूरी की तलाश करना है
इतना आसान
नहीं होता,
आदमियों की जात में
दो जून की रोटी का
इंतजाम कर पाना .
अनुराग चंदेरी
----------------------------------------------------------------
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें