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गुरुवार, 5 अप्रैल 2012

subah---------anurag chanderi

सुबह
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 तू 
आ गई  फिर
अकेली सुबह
मेरे सपनो ने
समझाया था तुझे
कितना
पूरी रात
इतना अनसुना कर के
इतनी खुश होती है
ओस
ने अपना आना नहीं छोड़ा
देख कमल के साथ बैठी है
मैने भी किसी को बुलाया था
बो क्यों नहीं ?
मै अकेला बैठा
सोचता हूँ
कहीं
ये
अकेलापन ही तो मेरा साथी नहीं
इसे ही गले लगा लूं
इसका स्वागत कर
आगोश में ले लूं
शायद सुबह भी यह चाहती है
--------------------------------------------------------------अनुराग चंदेरी
 
 

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