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सोमवार, 21 मई 2012

गृह लक्ष्मी

गृह लक्ष्मी 
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देह विज्ञान से 
परिचय के वाद 
मैने नहीं जाना प्रेम 
आने लगी  ऊबाईयां 
देख कर तुम्हारा वदन
और सहसा 
बन गई तुम 
एकदम सामान्य 
अब नहीं लगती 
आवाज तुम्हारी 
काजोल जैसी 
और न ही बची  है रंगत 
तुममे दीपिका पादुकोण सी 
मेरा मन तो 
बिलकुल सलमान है 
ढूँढ ही लूँगा 
नयी स्त्रियों को 
आखिर पुरुष हूँ मै
तुम बस 
रखना ख्याल 
घर पर मेरे माँ बाप का 
और बच्चों को 
पालने का 
अरे जुडी हैं 
साड़ी मर्यादाये तुमसे 
तुम्ही तो हो मेरी 
गृह लक्ष्मी ---------------अनुराग चंदेरी




शुक्रवार, 4 मई 2012

ब्रक्षों


अहसास के पर 
उसके उगे नहीं है अब तक ,
बरना बो इतनी बेरुखी न रखता 
कबका गले लगा लिया होता ------अनुराग चंदेरी
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ब्रक्षों से बेहतर नहीं 
तुम्हारा चुप होना ,
क्या बात है 
चुप हो कर भी ,
कोई साजिश 
रचते हो .---------------------------अनुराग चंदेरी
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नदी

दूरियों कि नदी तो 
बना ली 
तुमने , मेरा यकीन है 
मै चाहत कि नाव
बना लाऊंगा 
तुमको दिल मै बसाया है 
रग़ रग मे
ले आऊंगा 
तुम कितनी भी गहरी नींद मे 
सो जाना 
मै सपना बन के आ जाऊंगा ----अनुराग चंदेरी

दर्द


मेरे हिस्से में 
दर्द भर होते 
तो क्या बात थी , 
मुझे तो झूंठा 
हँसना भी पड़ता है
उसके लिए ----------अनुराग चंदेरी
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श्रंगार

मैने कब चाहा
कि तुम मेरे 
जीवन के श्रंगार बनते 
तुम न आते करीव 
तो रिश्तों के 
न ये आकार बनते ,
अब तुम चले हो 
दूर मुझसे 
मेरे दिल में 
ग़मों के इतने प्रकार 
न बनते ----अनुराग चंदेरी

कसमे

कसमे खानी थीं 
तो खा ली ,
बादे भी किये बड़े बड़े 
और एक सच 
उन्हें पूरा भी किया 
फिर क्यों है तल्खी इतनी 
कि गले लगाते नहीं 
और दूर भी नहीं जाते -------अनुराग चंदेरी

घोंसला

कोई नहीं जान सका है 
की कितना दर्द सह के
नया घोंसला बनती है चिड़िया 
यह जानते हुए भी 
कि क्रूर हाथ 
अब भी तैयार खड़े है 
उसे मिटाने के लिए --------अनुराग चंदेरी

इश्क के हालात

इश्क के हालात बड़े 
नए हो गए 
डिजिटल युग मै ,
मै याद करता हूँ उसे 
बो फोन नहीं करता 
बस मिस काल करता है ------अनुराग चंदेरी

बुधवार, 2 मई 2012

जुदाई

किसी  शाम 
मुझे टूट के 
बिखरता देखो 
, मेरी रगों में 
ज़हर जुदाई का 
उतरता देखो 
किस किस अदा से उसे 
माँगा है रब से 
आओ  कभी मुझे 
सजदे में 
सिसकता देखो --------------
प्रेषक - अमरेन्द्र अमर , लखनऊ , 
उ. प्र.
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मंगलवार, 1 मई 2012

मालिक


मालिक

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शोषण की तस्वीर 
मैने
मालिक और मजदूरों के 
मध्य ही नहीं पायी ,
मैने जिसे दिल से 
चाहा बो 
मालिक बन गया 
और निर्मित हो गए 
शोषण के बड़े बड़े बाँध 
मेरे और उसके मध्य 
जिन्हें पार कर पाना
लगा मुझे
मानो 
जीवन में साम्यवाद लाना हो 

----अनुराग चंदेरी

बजूद

बजूद
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जिन्हें अपने बजूद को 
लेकर लेकर लड़ना था 
बे भूखों मर कर भी 
लड़ते रहे ,
जिन्हें शौक था गुलामी का 
बे चमचा गिरी कर 
मालिक के 
इर्दगिर्द इकट्ठे हो कर 
जयकार करने लगे ,
शोषण के पन्नों को 
फाड़ पाना,उनमे
आग लगा कर
नई मुक्ति की इबारत लिखना
हर किसी के बस
की बात नहीं होती ------------------------
जिन्हें बफाओं
पर यकीन था 
बे चुप रहे
और अन्धकार में खो गए,
जो बेबफा थे बे 
बे चिल्लाने के लिए 
उजालों में 
खड़े हो गए --------------------अनुराग चंदेरी