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शनिवार, 28 अप्रैल 2012

अकेले भले


अकेले भले 
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उत्साह 
टूटता  चला 
जैसे जैसे 
तुम दूर चले 
मन की 
पगडंडियों मै 
हम न थे 
सूने भले 
आस 
भी जान जाती है 
हकीकत के 
पहाड़ों को 
तभी आँसूं 
बस रोने चले ,
क्यूँ  मिलन के 
गलियारों  में
प्यार भी 
एक राजनीति था 
बो दूर हो कर 
अब 
अजनवी बन 
हमसे मिलने चले ,
यकीन के 
जो शव्द कहा करते थे 
बे ही 
छल के सायों के
 साथ चले ,
न मिलते 
ऐसे साथी 
इनसे तो 
अकेले भले ........................अनुराग चंदेरी 

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