अकेले भले
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उत्साह टूटता चला
जैसे जैसे
तुम दूर चले
मन की
पगडंडियों मै
हम न थे
सूने भले
आस
भी जान जाती है
हकीकत के
पहाड़ों को
तभी आँसूं
बस रोने चले ,
क्यूँ मिलन के
गलियारों में
प्यार भी
एक राजनीति था
बो दूर हो कर
अब
अजनवी बन
हमसे मिलने चले ,
यकीन के
जो शव्द कहा करते थे
बे ही
छल के सायों के
साथ चले ,
न मिलते
ऐसे साथी
इनसे तो
अकेले भले ........................अनुराग चंदेरी
बहुत सुंदर...
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