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बुधवार, 11 अप्रैल 2012

सूरज
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सूरज
स्वर्ण बिखेरता 
 आँगन मै
हर रोज़ आ जाता है
और आलसी मनुष्य
बिस्तर मै दुवका
पड़ा रहता सोचता है
की अभी तो
उठने मै काफी देर है
ऑफिस जाने के लिए तो
दो घंटे शेष है .
अनुराग चंदेरी
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मेरे आलसी दोस्तों को समर्पित यह कविता
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