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गुरुवार, 12 अप्रैल 2012

ह्रदय का मर्म 
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मन सुमेरु सा स्थिर 
भाव हिमालय से ठहरे 
पडाब की बात फिर कहाँ बदले ,
जीबन के घने उपवन में 
जो ब्रक्ष जम गए 
बस बे ही पले,
यकीन दिलाती शव्दों की चट्टानें 
स्थिर प्रग्य हो 
बस आगे चले 
शव्दों के थे हम हुमायू
 हारे  रण तो क्या
फिर सत्ता लेकर ही हले,
ह्रदय में इस्पाती खम्भे थे
इरादों के आगे न टले,
जीवन में सूत्र विचारों के
जल जल कर भी
न जले ,
प्रीत की आग और
नैतिकता  के धारों में
बस आगे
बहते चले ,
जो सोचा बही कर्म बना
जीवन न था स्वर्ण
फिर भी ह्रदय का मर्म बना
तूफानों की धमकियों को भी
दिखाते रहे ठेंगा
आकर मन में
न कोई भय पले ,
जीवन हारों का खलिहान बना
फिर भी
ओंठों पर उत्साही हल चले ,
आशाओं के दरवाजों पर
देते रहे सदा दस्तक
माथे पर न कोई बल पले .
-----------------------------------------अनुराग चंदेरी ,
मेरी यह कविता  अंग्रेजी के प्रसिद्द अमेरिकन  कवि रोवेर्ट फ्रॉस्ट को समर्पित है , जिनकी प्रसिद्द कविता "Stopping By Woods on a Snowy Evening " से यह प्रेरित है . मै उन्हें याद कर , अपने इरादों को और भी मजबूत करता हूँ , मैने स्वयं से जो वादे किये है उन्हें हर हाल मै पूरा करूँगा . बाधाओं का सवाल नहीं है , इरादों का खौफ भी नहीं है . मुझे मेरे होने से कोई नहीं रोक सकता . लोगों का साथ रहना या न रहना बिलकुल निरर्थक है , मेरे स्वयं से किये वादे, मुझे मंजिल दिखाते है . पुनः फ्रॉस्ट जी को नमन करता हूँ . धन्यवाद .
 -------अनुराग चंदेरी .
 
  मै इस कविता की चार पंक्तियाँ भी प्रस्तुत कर रहा हूँ -
 
" The woods are lovely, dark and deep.
But I have promises to keep,
And miles to go before I sleep,
And miles to go before I sleep."------------Robert Fraust ( u. s. a. )
 

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