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शनिवार, 21 अप्रैल 2012

चुप-चाप (अज्ञेय )

चुप-चाप 
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चुपचाप  चुपचाप 
झरने  का  स्वर
हम  में   भर  जाए
चुपचाप  चुपचाप
शरद  की  चांदनी  
झील  की  लहरों  पर  तिर  जाए 
चुपचाप  चुपचाप 
जीवन  का  रहस्य 
जो  कहा  न   जाये , हमारी 
ठहरी  आँखों  मे  
गहराए  
चुपचाप    चुपचाप
हम  पुलकित  विराट में  डूबें 
पर  विराट  हम  में  मिल  जाए 
चुपचाप   चुपचाप 
-----------------------------------------------अज्ञेय 
   

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