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गुरुवार, 19 अप्रैल 2012

खामोशियाँ

खामोशियाँ 
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कोई  बीज  
थोड़े  ही  बोता  है  
खामोशियों के 
ये  तो  उग  आती  है
सहज  ही
मन  के  विचलन  और  
तनाब  के  दारुण  में  ,
ये   तो सघन  प्रेम  
और  गहन  आलिंगन  में 
भी  पैदा  हो  जाती  है ,
खामोशियों  की  तस्वीरें
जीवन  में 
रंग  देती  हैं 
यथार्थ  को  जानने  का 
समझ  के विज्ञानं  को  
 व्यस्थित   कर  पाने  का 
ये  उपद्रब  का  विपरीत  नहीं    
ये उपद्रब  का  विकल्प   हैं
ये  भयभीत  नहीं  करती  
ये  तो बना देती  हैं  निर्भय  हमें .
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अनुराग   चंदेरी   
 

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