कितना चाहा मैने तुमको
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कितना चाहा मैने तुमको
ये तुम प्रयास कर पहचानने के भी
जान ना सकीं ,
साँसों के साथ धड़कता है
तुम्हारा होना
सिर्फ सोच का
विज्ञानं भर काफी नहीं
मन के
गहराते भंवरों में
तुम रहीं एक
चक्रवात सी धारा,
मेरे होने का पर्याय हो तुम
इस जीवन का
अर्थ हो तुम
तुम्हारे साथ होने
और न होने से भी
ऊंचा है
मेरे प्रेम का विन्यास
, तुम्हे न जाने क्यूँ
इतना चाहता हूँ
शायद मेरे अधूरे
मन का ही कोई
हिस्सा हो तुम ,
मेरे मन में
रहता है एक अधूरापन
मानो नदी सा
मै पानी विहीन
तुम बिन
पसरा होऊं
इस धरा पर ,
तुम मेरे आकाश मै
सूरज हो
, लेकिन दिन मेरे पास नहीं है
मेरी दुनिया सिर्फ अँधेरी रातों की है ,
उजाले का श्राप इस जग ने
दिया है मुझे
मुझे तो अंधेरों मै
जीना मरना है ,
लेकिन आस लगी है
पल पल की
अँधेरा कभी तो विलीन होगा ,
मुझे तुमसे बेहद प्यार है ,
मैने तुम्हें
पूरा चाहा है
सारे मनोवेगों के साथ ,
शायद ईश्वर भी
देखता होगा
तो रखे होगा जलन अति की,
लेकिन अगर यह उसका भी
घ्रणा भाव है तो भी
मेरा प्यार कम न होगा
चाहे तुम बनी रहो
दूर अनंत सी ,
------------------------अनुराग चंदेरी
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