नाम -अनुराग चंदेरी,(मध्य-प्रदेश)
मन के जगत में गणन और तर्क को जगह कहाँ ,
यह तो सुनता है बह भी जो कहा नहीं ,
शव्दों का खुल जाता है झरना मन में
और जन्म होती है एक कविता
जो समाज के लिए बरदान भी हो सकती है
कविता एक क्रांति है नए होने की ,
कविता एक संघर्ष है लक्ष्यों को पाने का ,
कविता एक प्यार है
जो होती तो शव्दों में है
लेकिन रहती मन में है .
कविता के रस में बहती है खुशबू बसंत की ,
और पतझर में छिपा दर्द का बयार है
ये कविता ही है जिससे मुझे प्यार है .......अनुराग चंदेरी
बुधवार, 11 अप्रैल 2012
पुस्तकों की दुकान खोल कर अनपढ़ों के नगर मे रहे . -------------------------------
तुमसे बिछड़े तो किसी ख्वाव को पानी न मिला एक मरुथल था , जहा उम्र बिताई हमने . ------------------------------------उर्मिलेश
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें