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शुक्रवार, 20 अप्रैल 2012

भ्रम

भ्रम 
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चट्टान  से  भारी 
हो  गया  मन  तुम्हारा 
सारी  नाजुकताएं 
और  कोमल  अहसासों  को 
तुमने  पूर्णतः  
मन  की   स्मृतियों   से हटा दिया  है 
तभी  तो  चले   गए  तुम 
अनंत   की परिधियों  में 
दूरी के  उस  पार ,
बहां  जा कर भी  
खुद को छिपा   लिया   है 
तुमने तो ओढ़  ली   है चादर 
समाज  के   रिवाजों की 
परिवार  के बंधनों  की 
धार्मिक  विधानों  की 
अब तुम  इंसान होने  के 
भ्रम  में  हो 
मेरे  अहसासों  और
प्रेम  को भुला  कर ...
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अनुराग चंदेरी 


   

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