
नाम -अनुराग चंदेरी,(मध्य-प्रदेश) मन के जगत में गणन और तर्क को जगह कहाँ , यह तो सुनता है बह भी जो कहा नहीं , शव्दों का खुल जाता है झरना मन में और जन्म होती है एक कविता जो समाज के लिए बरदान भी हो सकती है कविता एक क्रांति है नए होने की , कविता एक संघर्ष है लक्ष्यों को पाने का , कविता एक प्यार है जो होती तो शव्दों में है लेकिन रहती मन में है . कविता के रस में बहती है खुशबू बसंत की , और पतझर में छिपा दर्द का बयार है ये कविता ही है जिससे मुझे प्यार है .......अनुराग चंदेरी
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मंगलवार, 1 मई 2012
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