बस एक प्रेम को ही छोड़ कर
सब ही सुख देता है
चाहे खाना खाना हो
और किसी अपंग को खिलाना हो
या फिर किसी की मदद करना हो
बिलकुल निस्वार्थ भाव से
ये प्रेम ही पीड़ा बन जाता है
किसी को चाहना ही
गुनाह बन जाता है
भूल जाता है मन
सब ही सुख देता है
चाहे खाना खाना हो
और किसी अपंग को खिलाना हो
या फिर किसी की मदद करना हो
बिलकुल निस्वार्थ भाव से
ये प्रेम ही पीड़ा बन जाता है
किसी को चाहना ही
गुनाह बन जाता है
भूल जाता है मन
की चिड़ियों की चहक में
ब्रक्षों के समीर संग नाचने में
नदियों के करतल नाद में
पहाड़ों के मौन में
बादलों की हसी में
फूलों के मकरंद में
खामोश शाम में भी
छिपी है मिठास
शहद से ज्यादा
मीठी
एक प्यार ही सब कुछ कैसे
हो सकता है
उस मूर्ख प्रेमी से
जो समझे भाषा केवल विषाद की
और समर्पण के फूलों में
उसे चुभें शूल अभिसार के
सही कहा है
मूर्ख के प्रेम से
बुद्धिमान की
गाली भली --------अनुराग चंदेरी
ब्रक्षों के समीर संग नाचने में
नदियों के करतल नाद में
पहाड़ों के मौन में
बादलों की हसी में
फूलों के मकरंद में
खामोश शाम में भी
छिपी है मिठास
शहद से ज्यादा
मीठी
एक प्यार ही सब कुछ कैसे
हो सकता है
उस मूर्ख प्रेमी से
जो समझे भाषा केवल विषाद की
और समर्पण के फूलों में
उसे चुभें शूल अभिसार के
सही कहा है
मूर्ख के प्रेम से
बुद्धिमान की
गाली भली --------अनुराग चंदेरी
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