हथेलियों मै
सूखी बजरी ,
पहाड़ों मै
छिपता उदास
चाँद ,
नदी का
शांत तट ,
चिलचिलाती धूप,
और भवकती
ये बेचैनी
सूखी बजरी ,
पहाड़ों मै
छिपता उदास
चाँद ,
नदी का
शांत तट ,
चिलचिलाती धूप,
और भवकती
ये बेचैनी
धधकते मन को
और कितना बारेगी
जली हुयी राख
जला नहीं करती --------------------अनुराग चंदेरी
और कितना बारेगी
जली हुयी राख
जला नहीं करती --------------------अनुराग चंदेरी
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