टूट ता जाये किनारा
और सिमटता जाए
नदी का मन भी
आखिर किस
हद में रहे बो
ओ किनारे के शागिर्द
ऐसी मुक्ति भी
प्राण घातक है
जो किसी को भी
न रोक पाए
न अपना बना पाए --------अनुराग चंदेरी
और सिमटता जाए
नदी का मन भी
आखिर किस
हद में रहे बो
ओ किनारे के शागिर्द
ऐसी मुक्ति भी
प्राण घातक है
जो किसी को भी
न रोक पाए
न अपना बना पाए --------अनुराग चंदेरी
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