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मंगलवार, 1 मई 2012

बजूद

बजूद
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जिन्हें अपने बजूद को 
लेकर लेकर लड़ना था 
बे भूखों मर कर भी 
लड़ते रहे ,
जिन्हें शौक था गुलामी का 
बे चमचा गिरी कर 
मालिक के 
इर्दगिर्द इकट्ठे हो कर 
जयकार करने लगे ,
शोषण के पन्नों को 
फाड़ पाना,उनमे
आग लगा कर
नई मुक्ति की इबारत लिखना
हर किसी के बस
की बात नहीं होती ------------------------

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