नाम -अनुराग चंदेरी,(मध्य-प्रदेश)
मन के जगत में गणन और तर्क को जगह कहाँ ,
यह तो सुनता है बह भी जो कहा नहीं ,
शव्दों का खुल जाता है झरना मन में
और जन्म होती है एक कविता
जो समाज के लिए बरदान भी हो सकती है
कविता एक क्रांति है नए होने की ,
कविता एक संघर्ष है लक्ष्यों को पाने का ,
कविता एक प्यार है
जो होती तो शव्दों में है
लेकिन रहती मन में है .
कविता के रस में बहती है खुशबू बसंत की ,
और पतझर में छिपा दर्द का बयार है
ये कविता ही है जिससे मुझे प्यार है .......अनुराग चंदेरी
शुक्रवार, 4 मई 2012
श्रंगार
मैने कब चाहा कि तुम मेरे जीवन के श्रंगार बनते तुम न आते करीव तो रिश्तों के न ये आकार बनते , अब तुम चले हो दूर मुझसे मेरे दिल में ग़मों के इतने प्रकार न बनते ----अनुराग चंदेरी
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