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बुधवार, 12 सितंबर 2012

-अज्ञेय---तुम्हें नहीं तो किसे और-

तुम्हें नहीं तो किसे और----अज्ञेय

तुम्हें नहीं तो किसे और 
मैं दूँ 
अपने को 
(जो भी मैं हूँ)? 
तुम जिस ने तोड़ा है 
मेरे हर झूठे सपने को— 
जिस ने बेपनाह 
मुझे झंझोड़ा है 
जाग-जाग कर
तकने को
आग-सी नंगी, निर्ममत्व
औ' दुस्सह
सच्चाई को—
सदा आँच में तपने को—
तुम, ओ एक, निःसंग, अकेले,
मानव,
तुम को—मेरे भाई को!

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